Namo jinanam

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दशलक्षण महार्चना (Daslakshan Maharchana)

मुनि श्री प्रज्ञानंद जी महाराज द्वारा लिखित "दशलक्षण महार्चना" सबसे अधिक किये जाने वाले इस विधान में सामूहिक पूजन, सभी धर्म के अलग-अलग अर्घ्य, 10 पूजा और सभी पूजा में 12 अर्घ्य हैं।  यह विधान भावों की निर्मलता और पुण्यार्जन का हेतु है।

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प्रेरणा (Prerna)

गणिनी आर्यिका श्री गुरुनंदिनी माताजी द्वारा संकलित और संपादित ये पुस्तक "प्रेरणा" 13 महासतियों और शीलवान्  नारियों के जीवनवृत को प्रकाशित करती है। ये पुस्तक अत्यंत प्रेरक, सरल और सुरुचिपूर्ण है।

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श्री वासुपूज्य विधान (vaasupujya vidhan)

मुनि श्री प्रज्ञानंद जी महाराज द्वारा रचित और प्रस्तुत "श्री वासुपूज्य विधान" में 4 कोट हैं जिनमे क्रम से 4, 8, 10 और 22 अर्घ्य हैं। ये विधान भक्तों को भक्ति रस में डुबाने वाला है।

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श्री अभिनंदन नाथ विधान (abhinandan nath vidhan)

3 वलय और उनमें क्रम से 9, 18 और 36 अर्घ्य सहित प्रस्तुत "श्री अभिनंदन नाथ विधान" मुनि श्री प्रज्ञानंद जी महाराज की रचना है। यह विधान आत्मा में असीम आनंद उत्पन्न करने वाला है।

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गुरुजी के दृष्टांत


प्रस्तुत पुस्तक "गुरुजी के दृष्टांत" आचार्य गुरुवर श्री वसुनन्दी जी मुनिराज के प्रवचन में आये शिक्षाप्रद दृष्टांतों का संकलन है, जो बहुत प्रेरणादायक व तनाव को दूर करने वाला है।  

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श्री मल्लिनाथ पुराण

जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ भगवान् के पावन जीवन चरित्र को आचार्य श्री सकलकीर्ति जी मुनिराज ने "श्री मल्लिनाथ पुराण" में  7 परिच्छेदों में निबद्ध किया है। ये ग्रंथ संस्कृत मूल का है किंतु यहां केवल हिंदी में प्रस्तुत किया गया है जिसमें श्री मल्लिनाथ भगवान् के पूर्व भव में राजा वैश्रवण, तपस्या, संयम, साधना एवम् तीर्थंकर प्रकृति के बंध में कारण भूत षोडशकारण भावना का उल्लेख भी किया है। भगवान् मल्लिनाथ स्वामी के पांचों कल्याणकों का वृहद् वर्णन रोचक, सुगम और बोधप्रद है।

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इक दिन माटी में मिल जाना (Ek din maati me mil jana)

प्रस्तुत कृति में आध्यात्मिक, सदाचार, भक्ति, वैराग्य और संयम की प्रेरणा देने वाले भजनों का अनुपम संग्रह किया है। ये भजनावली किसी भी भव्य प्राणी को आत्म-सरोवर में डुबकी लगाने के लिए लालायित करने वाली है।

Our Experiences

  • हमने तीर्थंकरों को तो देखा नहीं है किंतु आचार्य श्री वसुनंदी जी गुरुवर हमारे लिए भगवान ही हैं।हे भगवन्! आपका हाथ सदैव हमारे सिर पर रहे।

    निकुंज जैन, दिल्ली
    सरक्षंक -अखिल भारतवर्षीय धर्म जागृति संस्थान, भारत(रजि.)